इस्लाम के 5 अहम और ज़रूरी अरकान। 5 important and essential pillars of Islam

इस्लाम के 5 अहम और ज़रूरी अरकान। 5 important and essential pillars of Islam

इस्लाम के 5 अहम और ज़रूरी अरकान: इस्लाम दुनिया का सबसे तेज़ी से फैलने वाला धर्म है। फिलहाल इसके लगभग 1.9 बिलियन यानि कि लगभग 200 करोड़ मानने वाले हैं। इस्लाम के मानने वाले एक ईश्वरीय सिद्धांत पर यकीन रखते हैं। इस्लाम के मानने वाले को मुसलमान कहा जाता है। और एक व्यक्ति जो मुसलमान होता है या होना चाहता है उनके लिए इस्लाम के इन पांच बुनयादी सिद्धान्तों को मानना लाज़मी है।

1. गवाही देना कि अल्लाह एक है और मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम  अल्लाह के रसूल हैं। (तौहीद)

2. पाँच वक़्त की नमाज़ अदा करना।

3. अपने माल का ज़कात अदा करना।

4. रमज़ान महीने का रोज़ा रखना।

5. और जिसके पास हज करने कि ताकत हो तो बैतुल्लाह का हज करना।

अब हम इन पांचों बातों को थोड़े details से समझते हैं।

1. (तौहीद) गवाही देना कि अल्लाह एक है और मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह के रसूल हैं।

oneness of god

यह इस्लाम के अरकान का पहला रुक्न यानि पहला स्तम्भ है। यह एक तरह से Entry Gate है। यानि कि अगर कोई इस्लाम कि दूनया में दाखिल होना चाहता है तो उसके लिए ज़रूरी है कि वो इस बात का इक़रार करे कि अल्लाह एक है। यानि अल्लाह के इलवा कोई भी इस काबिल नहीं जिसकी इबादत, पूजा या वंदना किया जा सके। बल्कि हर एक चीज़ का ख़ालिक़, मालिक, राज़िक़ वही है। और हर एक चीज़ उसी के हुक्म के ताबे है। साथ ही साथ किसी को भी उसका शरीक न समझना या उसके जैसा न समझना। और मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह के रसूल और बंदे हैं। इस बात का भी इक़रार करना और दिल से इन बातों को मानना।

2. पाँच वक़्त की नमाज़ अदा करना।

namaz

इस्लाम में पाँच वक़्त कि नमाज़ हर आकिल (जिसको अक़ल हो ), बालिग (जो बालिग हो गया हो) मुसलमान पर फर्ज़ है। यह पाँच वक़्त है। फ़जर, जोहर, अस्र, मग्रिब, और ईशा। जब कोई मुसलमान होता है तो उसे यह पाँच नमाजें अदा करनी लाज़मी होती है। बेगैर किसी शरई उज्र के इसे छोड़ा नहीं जा सकता।

3. अपने माल का ज़कात अदा करना।

zakaat

एक इंसान जो मुसलमान होता है और उसके पास इतना माल होता है कि वह निसाब तक पहुँच जाता है तो उसपर ज़कात फर्ज़ हो जाता है, तब उसे ज़कात देनी होती है। अपने माल से 2.5 फीसद निकाल कर, ज़कात के जो हकदार हैं उनमें बाँट देना होता है। उदाहरण कि लिए अगर किसी के पास 1 लाख रुपया या उतनी कीमत का माल है तो उसे इसका 2.5 फ़ीसद यानि 2500 रुपया ज़कात के तौर पर निकालना होगा। शर्त यह है कि वह माल एक साल पूरा कर चुका हो।

4. रमज़ान महीने का रोज़ा रखना।

roza

पूरे साल में एक माह रमज़ान का होता है। इस रमज़ान के पूरे माह में लगातार रोज़े रखने होते हैं। यानि कि उपवास में रहना होता है। इसका तरीका यह होता है कि जो रोजहदार होता है उसे फ़जर कि अज़ान से पहले सहरी करना होता है। यानि कि कुछ खाना-पीना खाना होता है इस नियत से कि रोज़े से रहेंगे। फिर पूरे दिन बेगैर कुछ दना-पानी ग्रहण किए गुजारना पड़ता है। और जब सूरज डूबता है यानि मग्रिब कि अज़ान होती है तो अफ़तार करना होता है। और यह लगातार पूरा एक माह चलता है। फिर आखरी रोज़े की अगली सुबह ईद की नमाज़ होती है।

5. और जिसके पास हज करने कि ताकत हो तो बैतुल्लाह का हज करना।

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आखिरी और अंतिम रुक्न/स्तम्भ है बैतुल्लाह का हज। यानि कि अगर किसी मुसलमान के पास इतना पैसा है कि वो खाना-काबा तक अपने खर्चे से सफर कर सके, वहाँ रहने का खर्चा उठा सके, साथ ही साथ उसके परिवार के लोग उसकी गैर मोजूदगी में अमन से रह सके और वह जिस्मानी तौर पर भी हज के अरकान अदा कर सके तो ऐसे मुसलमान पर हज फर्ज़ है। ज़िंदगी में एक बार। अगर इस्तेतात रखता हो तो कई बार भी हज कर सकते हैं। या दूसरों के बदले भी कर सकते हैं।

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यह वह पाँच बुनयादी स्तम्भ है जो हर किसी को इसकी जानकारी होनी चाहिए। अगर आपको यह पोस्ट अच्छा लगा तो इसे दूसरों तक भी share कीजिये, अगर किसी तरह कि कोई भी बात या सुझाव हो तो कमेंट जरू करें।

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